झारखंड और छत्तीसगढ़ के सीमावर्ती क्षेत्रों में बालू के अवैध उठाव और परिवहन को लेकर विवाद गहराता जा रहा है। विशेष रूप से गुमला जिले के जारी प्रखंड के गोविंदपुर पंचायत में नदी से बालू का लगातार दोहन हो रहा है, जिससे ग्रामीणों और जनप्रतिनिधियों में आक्रोश है। इस अवैध गतिविधि से न केवल पर्यावरण को नुकसान हो रहा है, बल्कि क्षेत्र के पुलों और सड़कों के ढहने का खतरा भी बढ़ गया है। ग्रामीणों का कहना है कि यह बालू उठाव झारखंड के खेतों के किनारे से हो रहा है, जो कानूनी और सामाजिक रूप से गलत है।
1. बालू उठाव का विरोध: ग्रामीणों की चिंता
झारखंड के ग्रामीणों ने झारखंड-छत्तीसगढ़ बॉर्डर पर हो रहे बालू उठाव के खिलाफ जोरदार विरोध किया है। उनका कहना है कि नदी के झारखंड क्षेत्र से बालू का परिवहन छत्तीसगढ़ के जशपुर तक हो रहा है, जो न केवल अवैध है, बल्कि इससे उनके खेतों और जल संसाधनों पर भी असर पड़ रहा है। बालू के उठाव के कारण नदी के किनारे बसी कृषि भूमि पर भी खतरा मंडरा रहा है। किसानों का कहना है कि बालू के लगातार उठाव से न केवल खेतों की उपजाऊ मिट्टी बह रही है, बल्कि नदी के अस्तित्व पर भी संकट खड़ा हो गया है।
इसके अलावा, ग्रामीणों का आरोप है कि छत्तीसगढ़ सरकार की माइनिंग कंपनियां बालू के लीज और टेंडर का फायदा उठाकर झारखंड के क्षेत्र में घुसपैठ कर रही हैं। इन गतिविधियों को तुरंत रोके जाने की मांग की जा रही है।
2. प्रशासनिक लापरवाही या कानूनी विवाद?
बालू उठाव के इस मुद्दे पर स्थानीय प्रशासन का रुख अभी तक स्पष्ट नहीं है। जारी प्रखंड के सीईओ ने केवल मौखिक रूप से जांच का आश्वासन दिया है। उनका कहना है कि मामले की जांच की जाएगी और दोषियों के खिलाफ उचित कार्रवाई की जाएगी। लेकिन अब तक कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया है। यह प्रशासनिक लापरवाही है या फिर सीमा का कानूनी विवाद, यह जांच का विषय है।
ग्रामीणों का सवाल है कि अगर यह क्षेत्र झारखंड का नहीं है, तो सीमा का स्पष्ट सीमांकन किया जाना चाहिए। इसके बिना इस प्रकार की गतिविधियां भविष्य में भी जारी रह सकती हैं। क्षेत्र के जनप्रतिनिधियों ने भी इस मामले को लेकर राज्य सरकार से हस्तक्षेप की मांग की है।
3. नदी के अस्तित्व पर संकट: पर्यावरणीय क्षति का बढ़ता खतरा
बालू का अवैध उठाव न केवल ग्रामीणों के लिए एक चिंता का विषय है, बल्कि इसके कारण पर्यावरणीय संतुलन भी बिगड़ रहा है। नदी से बालू का दोहन करने से उसकी गहराई और बहाव पर नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है, जिससे नदी का प्राकृतिक प्रवाह बाधित हो रहा है।
अक्सर देखा गया है कि बालू के अत्यधिक उठाव के कारण पुल और पुलिया टूटने का खतरा बढ़ जाता है। करोड़ों की लागत से बने पुलों के ध्वस्त होने की घटनाएं आम हो चुकी हैं, और ग्रामीणों को डर है कि यह अवैध गतिविधि उनके इलाके में भी गंभीर दुर्घटनाओं का कारण बन सकती है। बालू के उठाव से नदी का तलक्षेत्र कमजोर हो जाता है, जिससे बाढ़ का खतरा भी बढ़ जाता है।
4. ग्रामीणों की मांग: अवैध गतिविधियों पर रोक लगे
ग्रामीण और जनप्रतिनिधि एकजुट होकर इस अवैध बालू उठाव के खिलाफ कार्रवाई की मांग कर रहे हैं। उनका कहना है कि यदि तुरंत कार्रवाई नहीं की गई तो क्षेत्र में बड़े पैमाने पर पर्यावरणीय और आर्थिक नुकसान हो सकता है। ग्रामीणों ने यह भी चेतावनी दी है कि अगर बालू उठाव पर रोक नहीं लगाई गई, तो वे उग्र आंदोलन करेंगे।
इस मामले में राज्य सरकार से हस्तक्षेप की भी मांग की जा रही है ताकि इस समस्या का स्थायी समाधान निकाला जा सके। इसके साथ ही, ग्रामीणों ने सीमा विवाद को सुलझाने और बालू माफियाओं पर कड़ी कार्रवाई की मांग की है।
स्थिति गंभीर, तत्काल कार्रवाई जरूरी
झारखंड-छत्तीसगढ़ बॉर्डर पर बालू के अवैध उठाव और परिवहन का मुद्दा न केवल क्षेत्रीय विवाद का विषय है, बल्कि इससे पर्यावरण और स्थानीय जनजीवन पर गंभीर असर पड़ रहा है। प्रशासन की निष्क्रियता और ग्रामीणों की बढ़ती नाराजगी इस बात का संकेत है कि समस्या जटिल है और इसका समाधान तत्काल आवश्यक है। यदि सरकार ने इस दिशा में कोई ठोस कदम नहीं उठाया, तो इससे बड़े पैमाने पर क्षति हो सकती है। अब वक्त है कि प्रशासन और सरकार मिलकर इस समस्या का समाधान निकालें, ताकि भविष्य में इस प्रकार की गतिविधियों पर पूरी तरह से रोक लगाई जा सके।
न्यूज़ – गणपत लाल चौरसिया