झारखंड के गुमला जिले के घाघरा प्रखंड में मंगलवार को आदिवासी समुदाय ने पारंपरिक उल्लास और श्रद्धा के साथ सरहुल पर्व का आयोजन किया। सरहुल संचालन समिति के नेतृत्व में सैकड़ों खोड़हा दलों ने ढोल-नगाड़ों की गूंज और पारंपरिक वेशभूषा में सामूहिक नृत्य करते हुए इस प्रकृति उत्सव को यादगार बना दिया।
गुमला जिला अंतर्गत घाघरा प्रखंड में मंगलवार को सरहुल महापर्व उत्साह और आस्था के साथ मनाया गया। इस अवसर पर सरहुल संचालन समिति द्वारा विविध सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन किया गया, जिसमें 150 से अधिक खोड़हा दलों ने भाग लिया।
कार्यक्रम की शुरुआत ‘झखरा कुंबा’ में पहान पुजार द्वारा पारंपरिक पूजा से हुई, जिसमें साल वृक्ष और प्रकृति के तत्वों की आराधना की गई। इसके उपरांत विभिन्न गांवों से आए खोड़हा दल एकत्रित हुए और पारंपरिक वाद्य यंत्रों — ढोल, मांदर, नगाड़ा आदि के साथ नृत्य करते हुए चांदनी चौक, थाना चौक और ब्लॉक चौक होते हुए करम डीपा पहुंचे। वहां यह रंगारंग जुलूस एक सांस्कृतिक सभा में परिवर्तित हो गया।
इस दौरान सभी खोड़हा दलों को सरहाना और सम्मान स्वरूप पुरस्कार प्रदान किए गए। संचालन समिति के पदाधिकारियों ने बताया कि सरहुल केवल पर्व नहीं, बल्कि प्रकृति के प्रति आदिवासी समुदाय की आस्था का प्रतीक है। वे साल वृक्ष, जल, जंगल और जमीन की पूजा कर पर्यावरण संरक्षण का संदेश देते हैं।
समिति ने युवाओं से आग्रह किया कि वे इस सांस्कृतिक विरासत को अपनाएं और अगली पीढ़ी को भी इससे जोड़ें। उन्होंने यह भी कहा, “हम आदिवासी प्रकृति के पूजक हैं और हमारा जीवन पूरी तरह से प्राकृतिक संसाधनों पर आधारित है। इसलिए इसे सहेजना हमारी जिम्मेदारी है।”
न्यूज़ – गणपत लाल चौरसिया