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Friday, September 20, 2024
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जमीन के फर्जीवाड़े से जुड़ी सौ से अधिक शिकायतें ED के पास पहुंची,मिले हैं पुख्ता सबूत, अधिकारियों-रसूखदारों और सत्ता प्रतिष्ठान में सनसनी

नारायण विश्वकर्मा-

झारखंड में दो दशक से घपले-घोटाले का रायता फैला हुआ है. इसकी सफाई की उम्मीद जगाई थी सीएम हेमंत सोरेन ने. उन्होंने दो साल पूर्व मीडिया के समक्ष अफसोस जताते हुए कहा था-‘जहां पैर रखता हूं, वहीं ब्लास्ट हो जाता है. पिछली सरकार ने इतनी गड़बड़ियां की है कि जहां छूते हैं, वहीं से गड़बड़ी निकल आती है. समय लगेगा सब ठीक करने में…!’ उनके इस बयान से लोगों का भरोसा जागा था. खासकर आदिवासी समाज को लगा था कि अब उसकी जमीन वापसी की प्रक्रिया शुरू होगी. लेकिन आदिवासी-मूलवासी समाज आज भी सबसे अधिक ठगा सा महसूस कर रहा है. पिछले साल मई माह में झारखंड में ईडी की इंट्री होती है. फिर हेमंत सरकार नहीं, बल्कि ईडी ब्लास्ट करता है. इसके बाद से सत्ता प्रतिष्ठान में जो सनसनी फैली है, उसकी सनसनाहट आज भी कायम है.

ED के पास पहुंची है जमीन से जुड़ी करीब 100 शिकायतें

पिछले 21-22 सालों से झारखंड की सभी सरकारों ने खान-खनिज से लेकर जमीन लूट खामोश रहे. आर्थिक भ्रष्टाचार की तमाम फाइलें एसीबी और सीआईडी की फाइलों पर धूल की मोटी परत जमी हुई है. ईडी अब सफाई अभियान में जुटा हुआ है. अब जमीन के बड़े मामलों की जांच ईडी करेगा। इसके लिए कागजात जुटाए जा रहे हैं। फर्जी कागजात पर जमीन की खरीद-बिक्री व म्यूटेशन करने के मामले में पिछले दस वर्षों से रांची में पदस्थापित सब-रजिस्ट्रार, सीओ, सीआई व कर्मचारियों की भूमिका की भी जांच होगी। क्योंकि, करीब एक दर्जन पदाधिकारियों की शिकायतें ईडी को मिली हैं। रांची में जमीन का गोरखधंधा लंबे समय से चला आ रहा है। लेकिन ईडी की कार्रवाई के बाद जिस तरह जमीन घोटालों का ताबड़तोड़ खुलासा हुआ है, इसके बाद गलत तरीके से जमीन की खरीद-बिक्री की शिकायतों का ढेर लग गया है। ईडी के पास रांची के चर्चित जमीन की खरीद-बिक्री से जुड़ी करीब 100 शिकायतें कागजात के साथ ईडी के पास पहुंची हैं।

जिले के कई अंचलों में जमीन के फर्जीवाड़े के पुख्ता सबूत

रांची जिले के करीब सभी 22 अंचलों में जमीन के अधिकतर मामलों में फर्जीवाड़ा हुआ है. जमीन से जुड़े कुछ बड़े मामले मसलन, नामकुम चाय बागान की 100 एकड़ जमीन की अवैध तरीके से बिक्री, जिसके रिकार्ड ही गायब हैं. चाय बागान में जमीन की कीमत 5 से 6 लाख रुपए प्रति डिसमिल है। इस हिसाब से 100 एकड़ जमीन की कीमत कम से कम 500 करोड़ रुपए होती है। बुंडू में 10 करोड़ में बेची गई 1457 एकड़ भूमि, पुंदाग में 200 एकड़ की अवैध जमाबंदी,  नगड़ी के पुंदाग में 383 खाता की 100 एकड़ से अधिक जमीन का म्यूटेशन करने, बड़गांई में 50 एकड़ से अधिक गैर मजरुआ जमीन की गलत तरीके से खरीद-बिक्री, बीआईटी मेसरा के लिए अधिग्रहीत की गई जमीन में से करीब 60 एकड़ जमीन की खरीद-बिक्री, कांके अंचल क्षेत्र में रिंग रोड के दोनों किनारे, लॉ यूनिवर्सिटी के पीछे और चामा मौजा में प्रभावशाली लोगों द्वारा करीब 200 एकड़ आदिवासी खाता की जमीन को गैर आदिवासी बनाकर बेचने, हेहल अंचल में 250 एकड़ से अधिक जमीन की खरीद-बिक्री फर्जी कागजात पर करने सहित कई मामले शामिल हैं.

नामकुम अंचल से जमीन के कई रिकार्ड गायब

बता दें कि भू-माफियाओं ने रांची के अपर समाहर्त्ता भू-हदबंदी के कार्यालय में भू-हदबंदी वाद संख्या 144/73-74 का रिकार्ड कार्यालय से गायब करा दिया। इस मामले में अपर समाहर्त्ता भू-हदबंदी ने अज्ञात लोगों के विरुद्ध कोतवाली थाने में प्राथमिकी भी दर्ज कराई थी। प्राथमिकी में कहा गया है कि नामकुम अंचल के मौजा बरगांवा के खाता नंबर 221 के प्लॉट नंबर 128, खाता संख्या 125 के प्लॉट नंबर 09, खाता संख्या 124 के प्लॉट नंबर 10, खाता संख्या- 215 के प्लॉट नंबर 121, 123, 125 से संबंधित रिकार्ड कार्यालय में उपलब्ध नहीं हैं।

ED की जांच की आंच से छोटे-बड़े अधिकारी सांसत में   

दरअसल, बड़े जमीन घाटोले में ईडी की जांच का आंच से रसूखदारों, सत्ता के दलालों, डीसी-एसी, सीओ-सीआई और राजस्व कर्मचारियों पर शामत आ सकती है. बता दें कि बुंडू अंचल में पांच वर्ष पहले 1457 एकड़ जमीन की खरीद-बिक्री में गड़बड़ी हुई थी। इस मामले की जांच तत्कालीन दक्षिणी छोटानागपुर प्रमंडलीय आयुक्त डॉ. नितिन मदन कुलकर्णी ने कराई थी। जांच रिपोर्ट में कहा गया था कि रांची के बिल्डर कोसी कंसल्टेंट और शाकंभरी बिल्डर्स ने बुंडू अंचल के 12 गांवों में आनेवाली सभी जमीन की रजिस्ट्री दो डीड के माध्यम से कराई। जमीन का सरकारी वैल्यू मात्र 10 करोड़ रुपए बताया गया। मामले में तत्कालीन डीसी की भूमिका को भी संदिग्ध माना गया। रांची के मेसरा में स्थित बीआईटी के लिए वर्ष 1958-59 और 1964-65 में अधिग्रहित 730 एकड़ जमीन में से 60 एकड़ जमीन अवैध तरीके से बेच दी गई। अंचल के पदाधिकारियों व कर्मचारियों ने म्यूटेशन भी कर दिया। एक ही जमीन पर दोहरी जमाबंदी खोल दी गई। इस मामले में बीआईटी के कुल सचिव ने कांके सीओ को पत्र लिखकर अवैध जमाबंदी रद्द करने का आग्रह किया। तब जाकर सीओ ने मामला सुलझाया।

नगड़ी,कांके,नामकुम,बड़गाई सहित कई अंचलों में जमीन का फर्जीवाड़ा

इसी तरह से नगड़ी अंचल के पुंदाग मौजा के खाता नंबर 383 की 100 एकड़ से अधिक जमीन गलत तरीके से बेच दी गई। नगड़ी के कई सीओ ने जमीन दलालों व खरीदारों से सांठगांठ कर म्यूटेशन भी कर दिया। पिछले वर्ष नगड़ी सीओ व अपर समाहर्ता की जांच रिपोर्ट के आधार पर रांची डीसी कोर्ट ने करीब 50 एकड़ जमीन की जमाबंदी रद्द करने की प्रक्रिया शुरू की, लेकिन प्रभावशाली लोगों के दबाव में कार्रवाई रुक गई। क्योंकि इस मामले में दर्जनों आईएएस-आईपीएस व अधिकारियों ने जमीन ली है। कांके अंचल में 200 एकड़ से अधिक आदिवासी जमीन के फर्जी कागजात बनाकर गैर आदिवासी दिखाते हुए बेचने का मामला भी सामने आया है। रिंग रोड के किनारे दर्जनों खाता-प्लॉट की जमीन बेची गई। इसके अलावा लॉ यूनिवर्सिटी के पीछे एक डेवलपर द्वारा नदी की जमीन को पाट कर प्लाटिंग करने, चामा मौजा में प्रभावशाली लोगों द्वारा आदिवासी खाता की जमीन फर्जी कागजात पर खरीदने और गलत तरीके से म्यूटेशन किए जाने की शिकायत ईडी से की गई है।

नितिन मदन कुलकर्णी ने दशकों से लंबित 424 से अधिक वादों का निष्पादन कर रिकार्ड बनाया

उल्लेखनीय है दक्षिणी छोटानागपुर के पूर्व आयुक्त नितिन मदन कुलकर्णी ने अपने डेढ़ साल के कार्यकाल में दशकों से लंबित 424 से अधिक वादों का निष्पादन कर रिकार्ड बनाया. झारखंड राज्य के किसी भी प्रमंडल के आयुक्त के नाम अबतक यह रिकार्ड नहीं बन पाया है. आयुक्त न्यायालय द्वारा निष्पादित पुनरीक्षण के 900 वादों में से करीब 424 से अधिक वादों का निष्पादन कर आदिवासी रैयतों का उद्धार किया गया. ये तब हुआ, जब रांची के निलंबित आईएएस छविरंजन का उन्हें सकारात्मक सहयोग नहीं मिला था. मिसाल के तौर पर आयुक्त द्वारा सिल्ली अंचल में आदिवासी भूमि के अवैध हस्तांतरण एवं नामांतरण की जांच करायी गई और दोषी पदाधिकारियों पर ठोस कार्रवाई के लिए रांची के डीसी को निर्देश दिया. लेकिन छविरंजन बतौर डीसी आयुक्त के दिशा-निर्देश की लगातार अवहेलना करते रहे.

छविरंजन किसी कीमत पर आयुक्त को हटाने पर अड़े हुए थे

सूत्र बताते हैं कि छविरंजन किसी कीमत पर आयुक्त को हटाने पर अड़े हुए थे. खासकर तब, जब आयुक्त ने हेहल अंचल के बजरा मौजा के खाता-140 और बुंडू अंचल के मौजा कोड़दा के गलत जमीन के हस्तांतरण की जांच कर सरकार को प्रतिवेदन भेजा था. इसके बाद से ही छविरंजन ने अपनी लॉबी के जरिए श्री कुलकर्णी को आयुक्त पद से हटवा दिया. शायद यही कारण है कि आयुक्त की रिपोर्ट पर साल भर बाद भी संज्ञान नहीं लिया गया. दरअसल, आदिवासी हित में एक गैर आदिवासी अफसर के बेहतरीन कामकाज को सत्ता के दलालों को कभी रास नहीं आया. इससे हेमंत सोरन के आदिवासियों के विकास के प्रति कथित रूप से समर्पित सरकार की नीयत का पता चलता है.

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