22.1 C
Ranchi
Thursday, September 19, 2024
Advertisement
HomeNationalST का वर्गीकरण और क्रीमी लेयर का निर्धारण संविधान की मूल भावना...

ST का वर्गीकरण और क्रीमी लेयर का निर्धारण संविधान की मूल भावना के खिलाफ : बंधु तिर्की

13 करोड़ आदिवासियों से सीधे जुड़ा है यह मामला, आदिवासियों के वर्गीकरण से समूल नष्ट हो जायेगी आदिवासी सभ्यता-संस्कृति 

रांची : पूर्व मंत्री एवं झारखण्ड प्रदेश कांग्रेस कमेटी के कार्यकारी अध्यक्ष बंधु तिर्की ने कहा है कि सर्वोच्च न्यायालय द्वारा हाल में दिये गये फैसले के अनुरूप यदि आदिवासियों का उप जनजातियों में वर्गीकरण करने के साथ राज्यों द्वारा क्रीमी लेयर का निर्धारण किया जाता है तो इससे न केवल आदिवासियों की सभ्यता-संस्कृति नष्ट हो जायेगी, बल्कि यह संविधान की मूल भावना के खिलाफ भी है. श्री तिर्की ने इस मामले पर लोकसभा और राजयसभा में चर्चा की मांग करते हुए कहा कि यह देश के 13 करोड़ आदिवासियों से सीधे यह जुड़ा मामला है. श्री तिर्की ने कहा कि वैसे यह न्यायालय का मामला है, लेकिन फिर भी इस फैसले से भाजपा को अपने राजनीतिक स्वार्थ के तहत अपने राजनीतिक हित को गलत तरीके से साधने में ही मदद मिलेगी. भाजपा आदिवासियों के बीच दीवार खड़ी कर अपने हिंदुत्व की धार को मजबूत करना चाहती है. उन्होंने आशंका व्यक्त की कि केन्द्र सरकार ने जान-बूझकर, आदिवासियों का पक्ष मजबूती के साथ न्यायालय के समक्ष नहीं रखा गया, जिसके कारण ऐसा निराशाजनक निर्णय सामने आया है. श्री तिर्की ने कहा कि यदि सर्वोच्च न्यायालय के आदेश का अक्षरश: पालन किया जाये तो इससे जनजातीय समुदाय हाशिये पर चला जायेगा.

‘देशभर में फैले 800 नजातियों के क्रीमी लेयर का निर्धारण बहुत जटिल होगा’ 

श्री तिर्की ने कहा कि इन्हीं गंभीर और अवास्तविक परिस्थितियों के पैदा होने की आशंका, मरांग गोमके जयपाल सिंह मुंडा ने व्यक्त की थी और जनजातीय शब्द की बजाय आदिवासी शब्द के प्रयोग पर जोर दिया था. उन्होंने कहा कि यदि सही तर्क के साथ ज़मीनी परिस्थितियों के मद्देनज़र बातें की जाये तो सर्वोच्च न्यायालय के निर्देशों को जमीनी स्तर पर लागू करने के बाद छोटे-छोटे जनजातीय समूहों का अस्तित्व खतरे में पड़ जायेगा क्योंकि लोहरा, महली जैसे अनेक वैसे समुदाय हैं जिनकी जनसंख्या उरांव और मुंडा आबादी की तुलना में बहुत कम है लेकिन उनमें केवल आदिवासी होने के आधार पर एकजुटता है और सभी एक समान आर्थिक-सामाजिक डोर से बंधे हैं. उन्होंने कहा कि पूरी आबादी के केवल आर्थिक आधार पर वर्गीकरण का खमियाजा अंतत उन्हीं आदिवासियों को भुगतना पड़ेगा और इसका असर आरक्षण के साथ ही उनको मिलनेवाली सरकारी योजनाओं के लाभ पर भी होगा. श्री तिर्की ने कहा कि 2004 में ईवी चिन्नैया बनाम आंध्र प्रदेश राज्य मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने यह कहा था कि अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों का उप-वर्गीकरण नहीं किया जा सकता है और वह फैसला बिल्कुल सटीक था जबकि वर्तमान फैसले में ऐसा नहीं है. श्री तिर्की ने कहा कि सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय वास्तव में भाजपा की उस नीति की जीत है जिसमें वह आरक्षण की समीक्षा के नाम पर उसे धीरे-धीरे समाप्त करना चाहती है. श्री तिर्की ने कहा कि यदि सर्वोच्च न्यायालय की बातों को मान भी लिया जाये तो देश भर में फैले 800 आदिवासी जनजातियों के क्रीमी लेयर का निर्धारण बहुत जटिल है.

- Advertisment -

Most Popular

Recent Comments