नाराज वर्मा ने कहा-2019 में जो गलती पार्टी ने की थी, फिर उसे रिपीट करना घातक सिद्ध हो सकता है…!
रांची : एनडीए में सीट शेयरिंग को लेकर कोहराम मचा हुआ है. खासकर भाजपा में अब पाला बदल का खेल शुरू हो गया है. रांची सीट पर टिकट नहीं मिलने से कई दावेदार नाराज हैं. सभी को लगा था कि इस बार सीपी सिंह की उम्र को लेकर उनको ड्राप किया जाएगा पर अंतिम समय में वे टिकट ले उड़े, लेकिन कम से कम चार-पांच लोगों को गहरा धक्का लगा है. भाजपा नेता संदीप वर्मा ने रविवार को बाकायदा प्रेस कॉन्फ्रेंस अपनी भड़ास निकाली है. वे कहते हैं भाजपा के उम्मीदवारों की सूची देखकर कार्यकर्ता हतप्रभ हैं, सब लोग निराशा में हैं। ये भाजपा के हर कार्यकर्ता का दर्द है जो, संगठन को अपने खून से सींचकर इसे विश्व की सबसे बड़ी पार्टी बनाया है। आज पार्टी ऐसे कार्यकताओं की लगातार अनदेखी कर रही है। 2019 की जो गलती पार्टी ने की थी पुनः उसी गलती को आज दोहरा दिया गया। पार्टी अगर अपने फैसले पर पुनर्विचार नहीं करेगी तो मैं निर्दलीय रांची सीट से चुनाव लड़ूंगा।
‘अब भाजपा परिवारवाद का विरोध किस मुंह से करेगी?’
श्री वर्मा ने सभी नाराज दावेदारों का दर्द बयां करते हुए कहा कि रायशुमारी और सर्वे को अनदेखा कर जिस प्रकार से टिकट का बंटवारा किया गया अब हम किस मुंह से जनता के बीच परिवारवाद के खिलाफ बात करेंगे। जो परिवारवाद का आरोप दूसरे दल पर हमलोग लगाते थे, वही परिवारवाद भाजपा में पसर गया है. उन्होंने आश्चर्य जताते हुए कहा कि आजसू नेता रौशन लाल चौधरी 5 मिनट पहले आए शिवराज सिंह चौहान से मिलते हैं और टिकट लेकर निकलते हैं। ढुल्लू महतो के भाई शत्रुघ्न महतो को टिकट मिलना तो हतप्रभ करनेवाला है. वहीं जमशेदपुर पूर्वी से रघुवर दास की बहू और अर्जुन मुंडा की पत्नी मीरा मुंडा को टिकट दिया गया. उन्होंने पार्टी से सवाल किया कि इनलोगों का पार्टी में क्या योगदान हैं। इसके अलावा समीर उरांव, गीता कोड़ा, सीता सोरेन को लोकसभा चुनाव में हार के बाद भी आखिर किस आधार पर टिकट दिया गया।
‘तीन पूर्व सीएम ने अपनी पत्नी, बहू और बेटे को टिकट दिलवा दिया’
उन्होंने कहा कि चंपाई सोरेन के बेटे बाबूलाल सोरेन घाटशिला से टिकट मिल गया। लेकिन मेरे जैसे समर्पित कार्यकर्ता को टिकट से वंचित कर दिया गया. सवाल किया कि आखिर बाबूलाल मरांडी को आदिवासी क्षेत्र से चुनाव क्यों नहीं लड़ाया जा रहा है? इससे अवाम में क्या मैसेज गया? सीपी सिंह जब युवा नेता थे तब उन्हें रांची से मौका दिया गया। वह 6 बार विधायक रहे. फिर भी सत्तर पार के बुजुर्ग को टिकट थमा दिया गया.