समीक्षा बैठक में भाजपा के कर्णधारों ने अपने गिरेबां में नहीं झांका और आजसू की निर्भरता पर सवाल उठा दिया.
झारखंड में कहां और कितने बांग्लादेशी घुसपैठिए हैं? अगर हैं तो, गृहमंत्री पिछले दस साल से चुप क्यों? केंद्र सरकार की बीएसएफ किस मर्ज की दवा है? तीन दिसंबर को SC में होगी सुनवाई, केंद्र सरकार रखेगी अपना पक्ष.
नारायण विश्वकर्मा
रांची : विधानसभा चुनाव में भाजपा बुरी तरह क्यों हारी? झारखंड में ऐसी हार की कल्पना भाजपाइयों के अलावा मीडिया जगत ने भी नहीं की थी. समीक्षा बैठक में भाजपा ने अपने गिरेबां में नहीं झांक कर आजसू की निर्भरता पर जरूर सवाल उठा दिए हैं.
बैठक में कहा गया है कि पार्टी को अब अपना कुर्मी लीडर प्रोजेक्ट करना चाहिए. प्रदेश भाजपा चुनाव प्रभारी लक्ष्मीकांत बाजपेयी ने भाजपा की हार नहीं मानते हुए यह तर्क दिया कि भाजपा की स्वीकार्यता बढ़ी है, लेकिन हम अंकगणित में पीछे रह गए. वहीं कार्यकारी अध्यक्ष रवींद्र राय ने इंडिया गठबंधन पर आरोप मढ़ते हुए कहा कि भाजपा के खिलाफ जातीय व सांप्रदायिक दुर्भावना फैलायी गई.
संगठन के राष्ट्रीय महासचिव बीएल संतोष दिल्ली से आकर यहां हार की समीक्षा की. वे चुनाव के प्रचार के दौरान भी रांची आए थे. उन्हें इसलिए आना पड़ा था क्योंकि टिकट नहीं मिलने या सीटें बदले जाने को लेकर प्रत्याशियों में भारी रोष उत्पन्न हो गया था और उस वक्त एक साथ सात लोगों ने पार्टी को टाटा कर दिया था.
पलामू सांसद पर सवाल उठा
हालांकि समीक्षा बैठक में रूम के अंदर जो बातें हुईं, उसे मीडिया के सामने सही ढंग से प्रस्तुत नहीं किया गया. इसके बावजूद कई हारे हुए नेताओं ने जरूर मीडिया के सामने अपनी तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की है. नेताओं ने कहा कि कई प्रत्याशियों के साथ भितरघात हुआ है. लेकिन भितरघात किसने किया, यह बताने से सभी बचते नजर आए.
भवनाथपुर से हारे भानु प्रताप शाही का एक वीडियो वायरल हुआ, जिसमें उन्होंने कहा कि उनके साथ साजिश हुई है. जिसमें वे कह रहे हैं कि पलामू सांसद से व्यक्तिगत रूप से चुनाव प्रचार में शामिल होने का आग्रह किया था, लेकिन वे अंत तक नहीं आए.
सुर्खियों में रही भितरघात की खबरें
अब भानु को कौन बताए कि बीडी राम सांसद रहते वे कब घर से बाहर निकलते हैं? अपने आसपास कितनी सभाएं करते हैं? छतरपुर से राधाकृष्ण किशोर के खिलाफ वे भला कैसे चुनाव प्रचार करते? इसलिए भी शायद उन्होंने घर में रहना ही बेहतर समझा. वैसे भितरघात की खबरें सबसे अधिक सुर्खियों में रही. क्योंकि प्रदेश स्तर से लेकर प्रमंडल स्तर तक के कुछ नेताओं की भूमिका पर उंगली उठी है। बूथ से लेकर जिला स्तर के संगठन और कुछ जिला अध्यक्षों व प्रभारियों की भूमिका पर भी सवाल उठाये गये।
हिमंता को तो हुसैनाबाद नाम तक पसंद नहीं आया
सबसे अहम सवाल ये कि यह किसने तय किया कि झारखंड के चुनाव सह प्रभारी और असम के सीएम हिमंता विस्व सरमा झारखंड के इतिहास-भूगोल के ज्ञाता हैं? भाजपा के कुछ विघ्नसंतोषी नेताओं ने तो असम के सीएम को खलनायक करार दे दिया है.
भाजपा एक कद्दावर नेता ने नाम नहीं छापने की शर्त पर बहुत कुछ उगला है. उनका कहना था कि भाजपा में टिकट बंटवारे में उनकी मनमानी से प्रदेश के शीर्ष स्तर के नेता हतप्रभ थे.
अमूमन प्रभारी खुलकर चुनाव प्रचार नहीं करते हैं. प्रभारी का काम चुनाव जीतने की रणनीति पर फोकस करना होता है. लेकिन असम के सीएम ने तो झारखंड में घूम-घूम कर चुनाव को हिंदू-मुस्लिम एंगल देने की भरपूर कोशिश की. उन्हें हुसैनाबाद नाम तक पसंद नहीं आया. वे पूरे झारखंड से बांग्लादेशी घुसपैठियों को लात मार कर भगा रहे थे.
उन्होंने चुनाव प्रचार के दौरान उस विधानसभा क्षेत्र के स्थानीय मुद्दे पर कभी बात ही नहीं की. अब उनसे कौन पूछे कि पूरे झारखंड में कहां और कितने बांग्लादेशी घुसपैठिए हैं? अगर हैं तो गृहमंत्री अमित शाह पिछले दस साल से चुप क्यों रहे? केंद्र सरकार की बीएसएफ किस मर्ज की दवा है?
जामताड़ा से ही सीता सोरेन को क्यों लड़ाया गया?
उन्होंने बताया कि आखिर उनसे ये सवाल कौन पूछता कि झारखंड में अबतक के इतिहास में कितने नेताओं ने भाजपा का पाला बदल कर जेएमएम में गए? झारखंड के इतिहास में ये पहली बार हुआ कि सिर्फ 21 अक्तूबर को ही थोक भाव में बागी नेता भाजपा का दामन झटक कर जेएमएम में चल दिए.
उन्होंने कहा कि जामा से सीता सोरेन तीन बार एसटी सीट पर जीत चुकी थीं. फिर उन्हें जामताड़ा सीट क्यों दी गई? ये किसने तर्क दिया कि वे ओडिशा से आती हैं, इसलिए एसटी सीट (जामा) से चुनाव नहीं लड़ सकती हैं. फिर तीन बार जामा से सीता सोरेन कैसे चुनाव लड़ीं?
लूईस को बरहेट जाने के लिए क्यों दबाव बनाया गया?
दुमका से दो बार हेमंत सोरेन को शिकस्त देनेवाली लूईस मरांडी को बरहेट जाने के लिए क्यों दबाव बनाया गया? भाजपा चुनाव प्रबंधन को भेजे गए लूईस मरांडी के पत्र पर गौर क्यों नहीं फरमाया गया?
वे बताते हैं कि असम के सीएम को चुनाव पूर्व ही चंपई सोरेन को भाजपा में लाकर सरकार गिराने और यहां राष्ट्रपति शासन में चुनाव कराने की योजना बनी थी. लेकिन उनकी योजना बुरी तरह से फ्लॉप हो गई. चंपई के साथ आधे दर्जन से अधिक विधायकों को उनके साथ आना था. हकीकत तो ये है कि हिमंता विस्व सरमा एक दिग्गज पत्रकार के भ्रमजाल में उलझ कर रह गए.
सरना धर्म कोड पर पीएम-गृहमंत्री चुप क्यों रहे?
हेमंत सरकार ने सरना धर्म कोड बिल को लेकर 2020 में विधानसभा का विशेष सत्र बुलाकर केंद्र को प्रस्ताव भेज दिया है. हेमंत सोरेन ने चुनाव प्रचार के दौरान कई बार केंद्र सरना धर्म कोड बिल को लेकर प्रधानमंत्री और गृहमंत्री पर निशाना साधा लेकिन भाजपा की ओर कभी साफगोई पेश नहीं की गई. चुनाव प्रचार के दौरान भाजपा की ओर से सिर्फ ये कहा गया कि सरकार बनने के बाद इसपर विचार-विमर्श किया जाएगा. फिर सवाल उठता है कि केंद्र सरकार चार साल तक विचार-विमर्श क्यों नहीं किया?
भाजपा के पास मुद्दों की कमी नहीं थी
दरअसल, हेमंत सोरेन सरकार को घेरने के लिए भाजपा के पास मुद्दों की कमी नहीं थी. स्थानीय नियोजन नीति और डोमिसाइल के मामले पिछले 24 साल से यथावत हैं. पेसा कानून और समता जजमेंट को लागू कराने में किसी को दिलचस्पी नहीं है. हकीकत में संतालपरगना में पलायन-रोजगार सबसे पुरानी और विकराल समस्या है. इसपर किसी भी सरकार ने कभी ठोस पहल नहीं की.
सिदो-कान्हू मुर्मू विश्वविद्यालय को केंद्रीय आदिवासी स्वायत्त विश्वविद्यालय बनाये जाने पर भाजपा ने कभी हेमंत सरकार से सवाल नहीं किया. लेकिन भाजपाइयों को लगा कि बांग्लादेशी घुसपैठियों के नैरेटिव से वे वोटों का ध्रुवीकरण करने में सफल हो जाएंगे. लेकिन संताल में इस नैरेटिव को सिरे से खारिज कर दिया गया.
सरयू राय की राय पर गौर क्यों नहीं?
इस संबंध में सरयू राय ने एनडीटीवी के सवाल पर बड़ा सटीक जवाब दिया. उन्होंने कहा कि अगर ऐसा है तो पहले वहां से (संताल) समर्थन जुटाना चाहिए. मजेदार बात देखिए कि संताल से भाजपा के उखड़ने के बावजूद हिमंता सरमा ने बाकायदा एक वीडियो जारी कर बांग्लादेशी घुसपैठियों के मामले को आगे बढ़ाने का निर्देश दिया.
इस निर्देश को त्वरित गति देने के लिए कोल्हान में मात खाए चंपई सोरेन ने संताल में उलगुलान का एलान कर दिया. उलगुलान के लिए भी तो संतालियों का सहयोग-समर्थन चाहिए.
इसके अलावा प्रदेश अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी ने बरहेट की एक घटना के सिलसिले में एक सभा की. सभा में बमुश्किल 50-55 लोगों की संख्या जुटी थी. वहां भी बाबूलाल ने बांग्लादेशी घुसपैठियों का राग अलापा.
सुुुुुप्रीम कोर्ट में 3 दिसंबर को सुनवाई
बहरहाल, इस मामले में 3 दिसंबर को सुप्रीम कोर्ट में केंद्र सरकार को अपना पक्ष रखना है. झारखंड हाईकोर्ट ने सरकार को फैक्ट फाइंडिंग कमेटी गठन करने का निर्देश दिया था. लेकिन हेमंत सरकार हाईकोर्ट के आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है. अब देखना है कि सुप्रीम कोर्ट में होनेवाली सुनवाई में केंद्र सरकार अपना पक्ष किस तरह से रखती है. सुनवाई के बाद पता चल सकेगा कि घुसपैठियों के लिए कौन जिम्मेवार है केंद्र या राज्य सरकार?