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Sunday, April 6, 2025
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आधुनिकता की अंधी दौड़ से अलग पुरखों की विरासत बचाने की जरूरत: शिल्पी नेहा तिर्की

रांची : प्रकृति पर्व सरहुल पर एक बार फिर राजधानी रांची की सड़कों पर आदिवासी समाज की संस्कृति और परम्परा का अदभुत नजारा देखने को मिला. पारंपरिक परिधान में ढोल-नगाड़ा और मांदर की धुन पर नाचते-झूमते लोग सरहुल पर्व के रंग में सराबोर दिखे. राज्य की कृषि, पशुपालन एवं सहकारिता मंत्री शिल्पी नेहा तिर्की भी सरहुल के मौके पर अलग अंदाज में नजर आई.

मंत्री रांची में कल्याण विभाग द्वारा संचालित भागीरथी आदिवासी छात्रावास के छात्राओं के साथ सरहुल शोभायात्रा में शामिल हुई. राजधानी रांची की सड़कों पर तीन घंटे से ज्यादा समय तक मंत्री शिल्पी नेहा तिर्की कभी आदिवासी नृत्य  तो कभी नगाड़ा बजाती हुई नजर आई. पारंपरिक परिधान में एक साथ बड़ी संख्या में शामिल छात्राओं का नृत्य देखते ही बन रहा था.

इस मौके पर मंत्री ने कहा कि मंगलवार को रांची की जनता ने फिर एक बार साबित कर दिया कि आदिवासी समाज संतुष्ट और सामूहिकता में विश्वास करने वाला समाज है. समाज को बांटने की कोशिश ना आज सफल हुई है और ना आगे कभी सफल हो पाएगी. आज दो विचारधाराओं के बीच ही लड़ाई है.

एक तरफ आदिवासी समाज है जो प्रकृति पर विश्वास करता है, जो सामूहिकता पर विश्वास करता है, जो संतुष्ट समाज की श्रेणी में आता है और दूसरी तरफ पूंजीवाद है. आधुनिकता की अंधी दौड़ से अलग पुरखों की विरासत और संस्कृति को बचाना ही सरहुल पर्व का असल संदेश है.

आदिवासी समाज की नई पीढ़ी को अपनी सभ्यता और परंपरा को आगे बढ़ाने के लिए एक ब्रांड एंबेसडर की भूमिका अदा करनी होगी. प्रकृति से प्रेम, प्रकृति की पूजा, प्रकृति की सुरक्षा आदिवासियत की पहचान है. इससे पहले मंत्री शिल्पी नेहा तिर्की ने सरहुल पर्व पर करमटोली आदिवासी हॉस्टल और हातमा स्थित वीर बुधु भगत आदिवासी छात्रावास परिसर में पारंपरिक रीति-रिवाज के साथ पूजा अर्चना की.

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