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Sunday, November 24, 2024
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झारखंड में नगर निकाय चुनाव पर ग्रहण लगाने के लिए सरकार जिम्मेवार, चुनाव की तैयारी के पूर्व टीएसी की बैठक क्यों नहीं बुलाई?

नारायण विश्वकर्मा

रांची : झारखंड में पूरी प्रशासनिक तैयारी के बावजूद नगर निकाय चुनाव पर ग्रहण लग गया, अब ये ग्रहण कब हटेगा? इसका जवाब केंद्र के पास है. इस चुनाव पर आरक्षण की प्रेतछाया का प्रकोप है. निकाय चुनाव कानून की जटिलताओं में उलझ गया है. 48 नगर निकायों का चुनाव दिसंबर में संपन्न हो जाना था। झारखंड में किसकी वजह से निकाय चुनाव के ऐलान के ठीक पहले ही आरक्षण का मामला उठा और चुनाव विवाद के घेरे में आ गया। प्रशासनिक स्तर पर कमजोर पहलकदमी या सरकार की आधी-अधूरी नीति को इसके लिए जिम्मेवार माना जा रहा है. माना जा रहा है कि अब नए सिरे से चुनाव का कार्यक्रम तय होने में तीन से चार महीने का वक्त लग सकता है. यानी अब 2023 के मार्च माह के बाद ही निकाय चुनाव की संभावना है.

जनजातीय समाज की ओर से हुआ था तीव्र विरोध
 झारखंड में नगर निकायों में अनुसूचित जनजाति के लिए एकल आरक्षण के मुद्दे पर पेंच फंसने की वजह से चुनाव टल गए हैं. दरअसल, राज्य निर्वाचन आयोग ने नगर निकाय बिल 2021 के आलोक में नए नियमों के अनुसार चुनाव के लिए जो आरक्षण रोस्टर प्रकाशित किया था,  उसमें अनुसूचित क्षेत्र के कई नगर निकायों में एकल पदों पर एसटी के लिए आरक्षण खत्म कर दिया गया था. इसे लेकर रांची सहित कई जगहों पर जनजातीय समाज की ओर से तीव्र विरोध हो रहा था. रांची में नगर निगम में मेयर के चुनाव को एसटी की जगह एससी सीट कर दिया गया. इसके लिए कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष बंधु तिर्की ने वर्तमान मेयर आशा लकड़ा के पक्ष में खड़े हो गए और सीएम को फिर से एसटी सीट बहाल रखने की गुहार लगाई. इसके बाद झारखंड की ट्राइबल एडवाइजरी काउंसिल (टीएसी) की बैठक में रायशुमारी हुई कि जनजातीय बहुल आबादी वाले अनुसूचित क्षेत्रों में एसटी आरक्षण को पूर्ववत कायम रखने पर सहमति बनी. अंतत: तय हुआ कि केंद्र की मंजूरी के बाद ही इस संबंध में निर्णय होगा और उसके बाद नगर निकायों के चुनाव कराए जा सकेंगे.

झारखंड हाईकोर्ट पहुंच चुका है मामला

निकाय चुनाव का मामला झारखंड हाईकोर्ट भी पहुंच चुका है. आदिवासी संगठनों ने एससी सीट रिजर्व करने के बाद अदालत का दरवाजा खटखटाया। आदिवासी संगठनों की याचिका पर कार्रवाई करते हुए कोर्ट ने राज्य सरकार और राज्य चुनाव आयोग को नोटिस भेजा। दोनों से इस मामले में जवाब मांगा गया। अब सरकार इन कानूनी विवादों से निपटने के बाद ही अब चुनाव का ऐलान कर पाएगी. इस बीच कोर्ट ने इस मामले में अगर कोई फैसला दिया तो उस आधार पर भी कार्रवाई की जायेगी। हाईकोर्ट में दायर याचिका में कहा गया है कि अनुसूचित क्षेत्र में नगर निकायों का गठन और विस्तार को लेकर जबतक विशेष कानून नहीं बनाया जाता है, तब तक यहां चुनाव कराना असंवैधानिक माना जाएगा।
उम्मीदवारों ने सरकार की कार्यशैली पर सवाल उठाया
दरअसल, प्रत्याशियों ने निकाय चुनाव को लेकर चुनाव प्रचार की तैयारी तेज कर दी थी। कई जगहों पर उम्मीदवारों ने जन संपर्क की शुरुआत भी कर दी थी। पोस्टर-बैनर के आर्डर दे दिए गए थे. कई लोगों के पैसे फंस गए हैं. ऐसे लोगों में गहरी निराशा उत्पन्न हो गई है. कई उम्मीदवारों ने सरकार की कार्यशैली पर उंगली उठायी है. इनका कहना है कि आरक्षण को लेकर शुरू से ही सरकार का रवैया ढीला-ढाला था. जब उन्हें पता था कि एसटी सीट को एससी कर दिया गया है तो उसी समय टीएसी की बैठक क्यों नहीं बुलायी गई? आखिर सरकार इससे बेखबर कैसे रही? सरकार को यह मालूम है कि संविधान की 5वीं अनुसूची के तहत राष्ट्रपति द्वारा जारी आदेश के अनुसार झारखंड सहित देश के 10 राज्यों को अनुसूचित क्षेत्र घोषित किया गया है. इन राज्यों में एक टीएसी का गठन किया जाता है, जो अनुसूचित जनजातियों के कल्याण और उन्नति से संबंधित मामलों पर सरकार को सलाह देती है. इस संवैधानिक निकाय का महत्व इसी बात से समझा जा सकता है कि इसे आदिवासियों की मिनी एसेंबली के रूप में जाना जाता है. फिर सरकार ने चुनाव की तैयारी के पूर्व टीएसी की बैठक बुलाने में देर क्यों की? ये अहम सवाल है.

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