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Sunday, November 24, 2024
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गिरिडीह के जमुआ के झारखंड धाम में सावन में शिवभक्तों को मिलता है मनोवांछित फल…श्रद्धालु देते हैं धरना

महाभारत काल से जुड़ा है इसका पौराणिक इतिहास…गर्भगृह की छत का निर्माण कार्य शुरू किया, लेकिन चमत्कारी घटनाओं के कारण छत निर्माण में सफलता नहीं मिली

कई मायनों में झारखंड धाम शिव के अन्य धामों से अलग और अनूठा है

गिरिडीह (कमलनयन) :  झारखण्ड के गिरिडीह में एक अनूठा शिवधाम है, जहां लम्बे समय से भक्तों द्वारा मनोवांछित फल के लिए धरना दिये जाने की प्रथा है। गिरिडीह जिला मुख्यालय से लगभग 45 किलोमीटर जमुआ अंचल में स्थित महाभारत काल से जुड़ा यह शिव का धाम “झारखण्ड धाम” के नाम से प्रसिद्ध है। दरअसल, झारखंड धाम कई मायनों में शिव के अन्य धामों से अलग और अनूठा है। इस धाम की विशेषता है कि भक्त अपनी मनोकामना के लिए हफ्तों-महीनों तक धरना देते हैं। जब उन्हें स्वप्न या अन्य स्रोतों से मनोकामना पूर्ति का आभास हो जाने पर बाबा का आभार व्यक्त कर वापस अपने घर लौट जाते हैं। यह क्रम अनवरत सालों भर चलाता है। इसके अलावा इस धाम की एक और विशेषता है कि इस धाम में भोलेनाथ को छतविहीन खुले आसमान के नीचे निवास करना पसंद है। हालांकि कई बार भक्तों ने गर्भगृह की छत का निर्माण कार्य शुरू किया, लेकिन चमत्कारी घटनाओं के कारण छत निर्माण में सफलता नहीं मिली।

झारखंड धाम का गर्भगृह

एक दिन पत्थर में हुई चमत्कारी घटना

मान्यताओं और किवंदतियों के अनुसार महाभारत युद्ध के दौरान भगवान शिव ने अर्जुन को इसी स्थान पर पाशुपात्र अस्त्र प्रदान किया था। उस दौरान पूरा इलाका जंगल-झाड़ से आच्छादित था। उसी स्थान पर एक पत्थर हुआ करता था, जिसपर चढ़कर लोग बैर तोड़ते थे। एक दिन पत्थर में हुई चमत्कारी घटना के बाद से ग्रामीण पत्थर के दो शिवलिंग स्वरूप में पूजा करने लगे। इलाके के लोग मंदिर के गर्भगृह में विराजमान शिवलिंग को स्वयंभू महादेव के रूप में मानते हैं। इलाके के लोगों की झारखण्ड धाम बाबा भोलेनाथ पर अपार आस्था है। समाजसेवी अनिल वर्मा और अनूप वर्मा कहते हैं कि बाबा के इस अद्भुत दरबार में अंर्तमन से मांगने वाले भक्तों की सभी मनोकामनाएं अवश्य पूर्ण होती है। भक्तगण मनोवांछित फल की प्राप्ति के लिए मंदिर के आसपास किराये पर धर्मशलाओं में कमरा लेकर हफ्तों-महीनों तक फलाहारी करके धरना देते हैं. किसी भक्त की मनोकामना जल्दी पूरी हो जाती है तो, कुछ को थोड़ा समय लगता है, लेकिन देर या सबेर मनोकामना पूरी जरूर होती है. इस दौरान भक्त पूरी निष्ठा से मंदिर में सेवा देते हैं। मंदिर में स्थापित देवी-देवताओें की पूजा-अर्चना कर शाम की आरती श्रृंगार पूजा के पश्चात मंदिर परिसर में जहां स्थान मिल जाता है,  शयन करते हैं। जब भक्त को आभास हो जाता कि बाबा ने उनकी अर्जी स्वीकार कर लिया है, फिर वापस अपने घरों को लौट जाते हैं। मनोकामना पूर्ण होने के पश्चात बाबा के दरबार में एक बार अवश्य आकर भोलेनाथ का जलार्पण कर आभार व्यक्त करते हैं।

दूर-दराज आए भक्त धरना पर बैठे हुए

अपनी-अपनी मान्यताएं

हालांकि कई ऐसे लोग भी हैं, जो धरने से मनोकामना पूर्ण होने के तथ्य से इत्तेफाक नहीं रखते हैं। लेकिन भक्तों की आस्था का अनुमान इससे सहज ही लगाया जा सकता है कि जो लोग निजी कारणों से चाहकर भी पवित्र श्रावण मास में वैद्यनाथ धाम देवघर नहीं जा सकते, वैसे भक्त झारखण्ड धाम में भोलेनाथ को जलार्पण करते हैं। जो भक्त कांवर लेकर देवघर जाकर भोले बाबा को जल चढ़ाते हैं, वैसे अनेक भक्त झारखंड धाम में जल अर्पित कर वापस घर लौटते हैं।
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