जांच के लिए ऊर्जा मंत्री दीपक बिरुआ ने एक उच्चस्तरीय कमेटी के गठन की घोषणा की है. यह अपने आप में एक महत्वपूर्ण फैसला है कि अडाणी के साथ हुए समझौते की जांच पड़ताल हो. यदि ऐसा हुआ तो इसे हेमंत सरकार का एक साहसिक फैसला माना जाएगा.
नारायण विश्वकर्मा
रांची : कारपोरेट जगत का बादशाह गौतम अडाणी का झारखंड आगमन बहुत कुछ बयां करता है. पिछले 28 मार्च को गौतम अडाणी का विशेष विमान से रांची पहुंचना और सीएम हेमंत सोरेन से मिलना, यह छोटी बात नहीं है. इस मुलाकात का सबब क्या था, ये सत्ता के गलियारों में चर्चा का विषय बना हुआ है. अडाणी से हेमंत सोरेन ने अपने सरकारी आवास पर दो घंटे क्या बात की? इसकी समुचित जानकारी अभी तक पब्लिक डोमेन में नहीं है.
सरकारी विज्ञप्ति में बस इतना कहा गया है कि राज्य के विकास और राज्य में निवेश के मसले पर दोनों ने बात की. हालांकि, इस मुलाकात के विस्तृत विवरण जैसे कि चर्चा के ठोस परिणाम या कोई आधिकारिक समझौता को अभी तक सरकार या अडाणी समूह की ओर से औपचारिक रूप से सार्वजनिक नहीं किया जाना कई सवाल खड़े करता है. दिलचस्प बात ये है कि विपक्ष इस मामले में वैसे सवाल खड़े नहीं कर रहा है, जैसा कि वह अमूमन करता आया है.
प्रबंधन और रैयत-कर्मचारियों के बीच दूरियां बढ़ीं
पावर प्लांट में जो कुछ नौकरियां प्रदान की गई हैं, इनमें बड़े बाबुओं और राजनेताओं की सिफारिश से नौकरी पानेवाले लोग ज्यादा हैं. आम आदमी कम ही लाभान्वित हुए हैं. दूसरी तरफ 75 फीसदी स्थानीय लोगों को रोजगार देने का हेमंत सोरेन सरकार का कानून भी अब तक बेकार साबित हुआ है. सच कहा जाए तो पावर प्लांट में प्रबंधन और रैयतों-कर्मचारियों के बीच दूरियां बढ़ती जा रही हैं. इसके कारण गोड्डा में पिछले कई महीनों से औद्योगिक अशांति छायी हुई है.
प्रदीप यादव की मांग पर जांच कमेटी गठित
पोड़ैयाहाट से कांग्रेस विधायक प्रदीप यादव का आरोप है कि अडाणी पावर प्लांट को समझौते के तहत आस्ट्रेलिया से आयातित हाई क्वालिटी के कोयले से बिजली का उत्पादन करना था. लेकिन कंपनी समझौते को ठेंगा दिखाकर घरेलू आयातित कोयले का इस्तेमाल कर बिजली का उत्पादन कर रही है. प्रदीप यादव का आरोप है कि अवैध और असुरक्षित तरीके से लोकल स्तर पर कोयले की ढुलाई भी हो रही है. इसकी जानकारी गोड्डा के पुलिस अधीक्षक को भी दी जा चुकी है. उन्होंने इस बाबत राज्य के मुख्य सचिव सुखदेव सिंह को पत्र लिखकर इंवायरन्मेंट क्लियरेंस की नये सिरे से समीक्षा और कड़ाई से जरूरी कार्रवाई की मांग की है.
उल्लेखनीय है कि झारखंड विधानसभा के बजट सत्र में बहस के दौरान यह तथ्य सामने आया कि अदानी को नौ वर्ष पूर्व रघुवर सरकार ने एसपीटी एक्ट का सरासर उल्लंघन कर पावर प्लांट के लिए गोड्डा में नाममात्र की कीमत पर जमीन आवंटित की गई. इस मामले की जांच के लिए ऊर्जा मंत्री दीपक बिरुआ ने एक उच्चस्तरीय कमेटी के गठन की घोषणा की है. यह अपने आप में एक महत्वपूर्ण फैसला है कि अडाणी के साथ हुए समझौते की जांच पड़ताल हो. यदि ऐसा हुआ तो इसे हेमंत सरकार का एक साहसिक फैसला माना जाएगा.
स्थानीय विरोधियों को शांत कराने में मशगूल रहते हैं नेता-अधिकारी
पिछले दिन पावर प्लांट में रैयतों ने धरना-प्रदर्शन किया था, जिसे श्रम मंत्री और गोड्डा के विधायक संजय यादव से फिलहाल शांत करवा दिया है. लेकिन कई रैयत इससे संतुष्ट नहीं हैं. कई स्थानीय लोगों ने बताया कि गोड्डा के सांसद निशिकांत दुबे के लगभग 70 लोगों को पावर प्लांट में काम दिया गया है.
आरोप है कि ये लोग काम नहीं करते हैं. कंपनी की ओर से इनपर काम करने का कोई दबाव भी नहीं बनाया जाता, जबकि करीब 50-55 कर्मचारियों (जो धरना-प्रदर्शन में शामिल थे) को वादे के मुताबिक उन्हें सारी सुविधाएं मुहैया नहीं करायी जा रही है. इसी मामले को मंत्री ने सुलझाने की कोशिश की थी, लेकिन असंतोष अब भी बरकरार है. यह भी जानकारी मिली है कि अडाणी पावर प्लांट की ओर से सीएसआर के तहत भी ग्रामीण क्षेत्रों की बेहतरी के लिए काम नहीं किये जा रहे हैं. रैयतों का आरोप है कि सीएसआर का पैसा नेताओं और उसके गुर्गे पर अधिक खर्च किया जाता है ताकि स्थानीय विरोधियों को शांत किया जा सके.
कमेटी में रैयतों को भी शामिल करने की मांग उठी
गोड्डा के स्थानीय लोगों ने बताया कि उच्चस्तरीय कमेटी गठित होने के बाद ही गौतम अडाणी को अकेले सीएम हेमंत सोरेन के दर पर आना पड़ा तो, उनके निहितार्थ का भी लोगों को पता चलना चाहिए. लोगों की मांग है कि कमेटी में रैयतों को भी शामिल किया जाए, तभी कमेटी को यहां के बारे में सही जानकारी मिल पाएगी, यहां अधिकतर नेता ऐसे हैं जो अडाणी कंपनी की मिलीभगत से अपनी रोटी सेंक रहे हैं.
कंपनी का दावा है कि वह सभी शर्तों का पालन कर रही है. लेकिन विधायक प्रदीप यादव इसे झूठा बता रहे हैं. उनका आरोप है कि वन, पर्यावरण एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के 11 नवंबर 2020 के पत्रांक के मुताबिक थर्मल पावर प्लांट को कोयले के स्त्रोत को लेकर पारदर्शिता बरतना है. अगर इसमें कोई परिवर्तन होता है तो इसकी जानकारी फौरन मंत्रालय से साझा करना है ताकि पर्यावरणीय मंजूरी के नवीनीकरण ससमय किये जा सके. इसके तहत कोयले के स्त्रोत का लोकेशन, प्रस्तावित मात्रा और गुणवत्ता, स्त्रोत की पावर प्लांट से दूरी और कोयले के परिवहन के माध्यम का जिक्र जरूरी है.
यही नहीं कोयले के दहन से सल्फर डाईऑक्साइड, नाइट्रोजन ऑक्साइड और मरक्यूरी आक्साइड की मात्रा तय मानक के अनुरूप होना चाहिए. जहां तक संभव हो कोयले का परिवहन रेलवे या कन्वेयर बेल्ट से ही होना चाहिए. जबतक यह विकल्प तैयार न हो, तबतक सड़क मार्ग से सुरक्षा मानकों के साथ कोयले की सप्लाई से पहले पर्यावरणीय मंजूरी जरूरी है. लेकिन ऐसा नहीं हो रहा है.
डीप बोरिंग कराकर भूगर्भ जल के अवैध दोहन का आरोप
यही नहीं एक अरसे से हजारों टन कोयला पश्चिम बंगाल से भारी वाहनों के जरिए ग्रामीण क्षेत्रों के भीतरी सड़कों का गैर कानूनी इस्तेमाल कर प्लांट तक लाया जा रहा है. विधायक प्रदीप यादव का कंपनी पर आरोप है कि समझौते के तहत पानी की व्यावसायिक जरूरतों को पूरा करने के लिए 93 किलोमीटर दूर बोरियो स्थित गंगा का पानी पाइपलाइन के जरिए लाने की अनुमति दी गई थी. लेकिन प्लांट निर्माण के दौरान गंगा से पानी लाने के बजाए किसानों को प्रलोभन देकर उनकी जमीन पर डीप बोरिंग कराकर भूगर्भ जल का अवैध दोहन किया गया. इसकी वजह से अब स्थानीय लोगों की पेयजल की समस्या से जूझना पड़ रहा है.
रैयतों का कहना है कि जमीन के एवज में तयशुदा रकम भी नहीं दी गई है. बताया गया कि जिस जमीन की कीमत 46 लाख रुपये प्रति एकड़ होनी चाहिए थी, उसे रघुवर दास की सरकार ने महज 3.25 लाख रुपए प्रति एकड़ की दर पर अडाणी को मुहैया करा दिया.
जमीन की बाबत उस समय 12 लाख रुपए प्रति एकड़ के मुताबिक चार गुना यानी कि 48 लाख रुपए प्रति एकड़ मिलना था. इसपर विवाद कायम है. पोड़ैयाहाट के कांग्रेस विधायक प्रदीप यादव पर रैयतों ने आरोप लगाया कि कंपनी के प्रति उन्होंने ढुलमूल रवैया अपनाया. इसके कारण भी जमीन विवाद और कार्यरत कर्मचारियों की मांगों पर सकारात्मक पहल नहीं हो पाई है. हालांकि विधानसभा में प्रदीप यादव ने ही गोड्डा में रैयतों और रोजगार को लेकर जांच की मांग उठायी थी. इसके बाद ही जांच कमेटी गठित की गई है.
पावर प्लांट से न बिजली मिल रही है, न स्थाई प्रकृति का रोजगार
दरअसल, अडाणी देश में सबसे कम नौकरी मुहैया करानेवाले उद्योगपति माने जाते हैं. रैयतों का कहना है कि हमें यह आश्वासन मिला था कि नियमित नौकरी स्थानीय लोगों को मिलेगी. राज्य के लोगों को उनके पावर प्लांट से न बिजली मिल रही है, न स्थाई प्रकृति का रोजगार मिल रहा है तो, फिर यह कारखाना हमारे किस काम का है? बताया गया कि यहां करीब तीन हजार अधिकारी-कर्मचारी काम करते हैं. स्थानीय स्तर पर बमुश्किल 150-60 कर्मचारियों को आउटसोर्सिंग कंपनी के हवाले कर दिया गया है. फिर कंपनी भी बदली बदली जा रहा है. इसके खिलाफ कर्मचारियों में आक्रोश है. अधिकतर अधिकारी बाहर के हैं. इन्हीं का यहां बोलबाला है.
आखिर किन शर्तों पर राज्य में अडाणी को निवेश करने दिया जाएगा?
वरिष्ठ पत्रकार और सोशल एक्टिविस्ट विनोद कुमार ने अडाणी-हेमंत की मुलाकात पर सवाल उठाते हुए कहा है कि निवेश करने के लिए तो अदाणी हमेशा तत्पर रहेंगे. उनके पास पैसा है और उसका फायदा निवेश में ही है. लेकिन निवेश किन शर्तों पर? क्योंकि झारखंड में उनका ट्रैक रिकॉर्ड बेहद खराब रहा है.
वे कहते हैं कि क्या एसपीटी एक्ट का उल्लंघन कर रघुवर सरकार ने जिस तरह जमीन का अधिग्रहण कर अडाणी को दिया, उसका कोई समाधान निकलेगा? क्या जमीन के मूल्य में कोई संशोधन करने के लिए अडाणी को बाध्य किया जायेगा? विस्थापितों को पक्की नौकरी देने के लिए कहा जायेगा? यह तो हेमंत सरकार को तय करना है कि वह किन शर्तों पर राज्य में अदाणी से निवेश करवाने वाली है?
जानकारी के मुताबिक सीएम और गौतम अडाणी के बीच हुई बंद कमरे की बैठक में मुख्य रूप से झारखंड में निवेश और खनन परियोजनाओं पर चर्चा हुई है. खास तौर पर, अडाणी समूह के हजारीबाग जिले के बड़कागांव के गोंदेलपुरा और गोड्डा के कोयला ब्लॉकों में वाणिज्यिक खनन को शुरू करने के लिए भूमि अधिग्रहण और कानूनी मंजूरी जैसे मुद्दों पर बात हुई, जो अभी तक रुके हुए हैं। इसके अलावा, भविष्य में राज्य में और निवेश की संभावनाओं पर भी विचार-विमर्श हुआ। हालांकि, इस बैठक में किसी ठोस सहमति की स्पष्ट जानकारी सार्वजनिक नहीं हुई है।
जमीन अधिग्रहण को लेकर गोन्देलपुरा कोल प्रोजेक्ट का मामला अधर में
बताया गया कि गौतम अडाणी बड़कागांव के गोन्दलपुरा कोल प्रोजेक्ट को लेकर भी गौतम अडाणी से बातचीत हुई है. यहां अडाणी समूह और स्थानीय लोगों के बीच तनाव की खबरें समय-समय पर सामने आती रही हैं. खासकर जमीन अधिग्रहण और पर्यावरणीय प्रभावों को लेकर लोग आशंकित हैं।
दोनों पक्षों के बीच किसी पूर्ण सुलह या समझौते की कोई पुष्ट जानकारी सार्वजनिक रूप से नहीं मिल पाई है। कहा जाता है कि स्थानीय समुदाय, विशेष रूप से बड़कागांव क्षेत्र के किसान, लंबे समय से अपनी जमीन, जल और जंगल की रक्षा के लिए विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं। उनकी मुख्य चिंताएं जमीन के जबरन अधिग्रहण, अपर्याप्त मुआवजा और खनन से होनेवाले पर्यावरणीय नुकसान से जुड़ी हैं। दूसरी ओर, अडाणी समूह का दावा रहा है कि यह प्रोजेक्ट स्थानीय स्तर पर रोजगार और विकास लाएगा। लेकिन गोड्डा के हालात के मद्देनजर लोगों को भरोसा अडाणी समूह से उठ गया है.
गोंदेलपुरा कोल प्रोजेक्ट: कंपनी से एक बड़ा वर्ग असंतुष्ट
दरअसल, गोंदेलपुरा कोल प्रोजेक्ट को लेकर पिछले कुछ वर्षों में कई बार वार्ता और मध्यस्थता की कोशिशें हुई हैं, लेकिन ये ज्यादातर आंशिक रूप से सफल रही हैं या फिर स्थानीय लोगों के एक बड़े वर्ग को कंपनी संतुष्ट नहीं कर पाई हैं। कुछ मामलों में, मुआवजे की राशि बढ़ाने या वैकल्पिक रोजगार के वादे किए गए, लेकिन ये भी विवादों को पूरी तरह खत्म नहीं कर पाए हैं.
अडाणी समूह से समझौते के समय राज्य सरकार से यह वादा किया गया था कि राज्य में जो भी पावर प्लांट लगेगा, उससे उत्पादित बिजली का 25 फीसदी राज्य सरकार द्वारा निर्धारित दर पर कंपनी राज्य को मुहैया करायेगी. लेकिन अडाणी प्लांट द्वारा उत्पादित तमाम बिजली बांग्लादेश को बेच कर भारी मुनाफा अर्जित कर रहे हैं. उन्होंने आश्वासन यह भी दिया था कि वे आस्ट्रेलिया से आयातित परिष्कृत कोयले का इस्तेमाल कारखाना में करेंगे ताकि प्रदूषण कम हो, लेकिन आरोप है कि बंगाल और झारखंड की खदानों का ही कोयला इस्तेमाल कर रहे हैं. गोंदेलपुरा कोल प्रोजेक्ट चालू हो जाने से अडाणी समूह फायदा होगा.
अगर बिजली बाजार रेट पर मिला, तो यह घाटे का सौदा होगा
हाल के घटनाक्रमों के अनुसार, अब झारखंड को भी बिजली उपलब्ध कराने की योजना है. शुरू में इस पावर प्लांट से उत्पन्न सारी बिजली बांग्लादेश को निर्यात की जा रही थी, लेकिन हाल ही में झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन और गौतम अडाणी के बीच हुई चर्चा के बाद, यह तय हुआ है कि अदानी समूह अब झारखंड को 400 मेगावाट बिजली उपलब्ध कराएगा। लेकिन अगर बिजली बाजार रेट पर मिलेगा, तो राज्य सरकार को कोई फायदा नहीं होगा, बल्कि यह घाटे का सौदा होगा.
अपनी गरज से गौतम अडाणी को सीएम के दर पर आना पड़ा…!
यहां इस बात का उल्लेख करना जरूरी है कि गौतम अडाणी हेमंत सरकार बनने के बाद यह उनकी पहली रांची यात्रा रही. पहली बार वे तब आए थे, जब गोड्डा में पावर प्लांट लांच करना था. उस वक्त वे देवघर-गोड्डा में ही कुछ पल के लिए रूके थे. जब वे आए थे तो पूर्व सीएम रघुवर दास ने उनके लिए पलके-पांवड़े बिछा दिए थे. याद करें रघुवर सरकार ने मोमेंटम झारखंड के समय गौतम अडाणी को रांची लाने में असफल रहे थे. वैसे उनके लाख प्रयासों के बावजूद न तो उद्योगपति जुटे और न कोई निवेश हो पाया.
इसके बावजूद मोमेंटम झारखंड में करोड़ों फूंक दिए गए. वहीं हेमंत सोरेन ने रांची में कोई वैश्विक यात्रा की और न ही झारखंड में निवेशकों के लिए कोई सेमिनार या कोई कार्यक्रम लांच किया गया. अपनी गरज से गौतम अडाणी को सीएम के दर पर आना पड़ा.
यह हकीकत है कि अकेले सरकार के भरोसे झारखंड में समृद्धि नहीं आएगी। इसके लिए बड़े उद्योगपतियों की जरूरत होगी। कारोबारी झारखंड में आएं, यहां पूंजी लगाएं, रोज़गार दें। यहां के बेरोजगारों को रोजगार मुहैया कराया जाए ताकि किसी को दूसरे राज्य में पलायन की जरूरत नहीं पड़े।
चाद रहे झारखंड में जल, जंगल, ज़मीन का नारा लगाने से सिर्फ़ किसी की राजनीति चमक सकती है, लेकिन राज्य और राज्यवासियों के चेहरे नहीं. बहरहाल, सीएम हेमंत सोरेन और गौतम अडाणी के बीच जो बातचीत हुई है, उसका खुलासा होना चाहिए ताकि अवाम किसी गफलत में न रहे. ये सरकार के इस्तकबाल का भी सवाल है और यही गुड गवर्नेंस की पहचान भी.
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