नारायण विश्वकर्मा
झारखंड में खनन लीज मामले को लेकर पिछले कुछ दिनों से राजनीतिक हलचल बढ़ी हुई है. भारत निर्वाचन आयोग में मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन और उनके भाई विधायक बसंत सोरेन के खिलाफ चल रहे मामले में चंद दिनों बाद फैसला आनेवाला है. चर्चा है कि चुनाव आयुक्त हेमंत सोरेन और बसंत सोरेन के विरोध में फैसला दे सकता है. अगर ऐसा हुआ तो हेमंत सरकार को सीएम की कुर्सी गंवानी पड़ेगी. पिछले साल भर से हेमंत सरकार को अस्थिर करने की कोशिश की जा रही है. हेमंत सरकार को गिराने की पहली बार पिछले साल कोशिश हुई थी तो, मैंने ट्वीट किया था कि कोई भी आदिवासी सीएम झारखंड में अबतक अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर सका है. पिछले तमाम घटनाक्रमों पर गौर करें तो, यह कहा जा सकता है कि अब वह घड़ी उनकी चौखट पर दस्तक दे रही है. अगर हेमंत सोरेन की सदस्यता चली जाती है, तब यह सवाल खड़ा हो जाएगा कि अब कौन बनेगा झारखंड का नया मुख्यमंत्री? इधर, चुनाव आयोग ने अपनी रिपोर्ट झारखंड के राज्यपाल रमेश बैस को भेज दी है. रिपोर्ट हेमंत सोरेन और बसंत सोरेन दोनों को लेकर है. चुनाव आयोग की अनुशंसा पर राज्यपाल दिल्ली में विधि विशेषज्ञों से राय ले रहे हैं. 24 अगस्त तक राज्यपाल रांची लौट आएंगे.
कल्पना और सीता भी हैं दावेदार…!
वैसे हेमंत सोरेन की उत्तराधिकारिणी के रूप में उनकी पत्नी कल्पना सोरेन का नाम सहजता से तो लिया जा रहा है. पर उनके नाम पर झामुमो के अंदर सहमति कैसे बन पाएगी, ये अहम सवाल है. राज्यसभा सांसद शिबू सोरेन के परिवार में से किसी एक नाम पर विचार चल रहा है. परिवार में शिबू सोरेन, उनकी बड़ी बहू विधायक सीता सोरेन के अलावा कल्पना सोरेन का नाम भी चर्चा के केंद्र में है. शिबू सोरेन के परिवार में सीता सोरेन तीसरी बार विधायक बनी हैं. वह परिवार और झामुमो में हेमंत सोरेन से भी वरिष्ठ विधायक हैं. सियासी हलचल के बीच सीता सोरेन के तेवर नरम जरूर हैं, पर तेजी से बदलते राजनीतिक घटनाक्रम पर उनकी निगाहें टिकी हुई हैं. झामुमो के अंदर कल्पना सोरेन का नाम सामने आने पर वह किस तरह की प्रतिक्रिया देंगी, यह अभी नहीं कहा जा सकता. हेमंत सोरेन के बदले कल्पना सोरेन की ताजपोशी को वह सहजता से स्वीकार कर लेंगी, इसमें संदेह है. झामुमो के सभी वरिष्ठ विधायकों से अगर रायशुमारी की गई तो, सीता सोरेन के नाम पर सहमति बन सकती है, पर कल्पना सोरेन के नाम पर एक राय बनाना आसान नहीं होगा. वैसे अंदरखाने में चर्चा है दोनों गोतिनी के बीच सीएम की दावेदारी को लेकर रस्साकशी जारी है.
कल्पना सोरेन की कुंडली में है राजयोग…!
झामुमो के एक वरिष्ठ कार्यकर्ता ने नाम नहीं छापने की शर्त पर बताया कि बदले राजनीतिक हालात में घर की बड़ी बहू सीता सोरेन का स्वाभाविक रूप से सीएम बनने का हक बनता है. झामुमो के आधे से अधिक विधायक सीता सोरेन के नाम पर अपनी सहमति दे सकते हैं. ऐसा होने से पार्टी में मतभेद नहीं उभरेंगे और सरकार को अपना कार्यकाल पूरा करने में भी आसानी हो सकती है. मान लिया जाए कि कल्पना सोरेन के नाम पर सहमति बन भी गई तो, उन्हें चुनाव लड़ाने में परेशानी आ सकती है. छह माह के अंदर हेमंत सोरेन को बरहेट विधानसभा क्षेत्र से उन्हें उम्मीदवार बनाया जाएगा. इसमें कई तकनीकी पेंच है. कल्पना सोरेन उड़ीसा के मयुरभंज जिले की निवासी हैं. ऐसी स्थिति में चुनाव में दिए जानेवाले तमाम कागजात में जाति प्रमाण पत्र को लेकर सबसे ज्यादा परेशानी आ सकती है. झारखंड में खतियान के आधार पर जाति प्रमाण पत्र बनाया जाता है. दूसरे राज्य का खतियान यहां मान्य नहीं है. इसके बावजूद अगर जाति प्रमाण बनवा भी लिया गया तो विपक्ष इस मामले को अदालत में चुनौती दे सकता है. झामुमो में हेमंत सोरेन का विकल्प अगर सीता सोरेन होंगी तो, कल्पना सोरेन को उपचुनाव नहीं लड़ाना पड़ेगा. वैसे झामुमो के ही एक वरिष्ठ नेता ने बताया कि 4-5 साल पूर्व कल्पना सोरेन की कुंडली बनायी गई थी. कुंडली में उनके राजयोग होने की बात कही गई है.
दोनों भाइयों की विधायकी पर दिल्ली की टेढ़ी नजर
बता दें कि हेमंत सोरेन पर आरोप है कि उन्होंने मुख्यमंत्री के पद पर रहते हुए रांची के अनगड़ा में पत्थर खनन लीज आवंटित कराया. सीएम के पास खान विभाग भी है। भाजपा का दावा है कि यह जनप्रतिनिधित्व कानून का उल्लंघन है, लिहाजा उनकी विधानसभा की सदस्यता खत्म होनी चाहिए. बसंत सोरेन के खिलाफ शिकायत में निर्वाचन आयोग से एक खनन कंपनी में साझीदार होने संबंधी तथ्य छिपाने का आरोप है। आयोग में हेमंत सोरेन के खिलाफ चल रहे मामले में बहस पूरी हो गई है। दोनों भाइयों की सदस्यता रहेगी या जाएगी, इसका निर्णय राज्यपाल को लेना है. लेकिन इस प्रकरण में दिल्ली की प्रमुख भूमिका से भी इंकार नहीं किया जा सकता.
दिल्ली में चल रहा है मंथन
खबर है कि दिल्ली में बैठे राजनीतिक धुंरधर झारखंड की सियासत पर नजरें गड़ाए हुए हैं. वैसे हेमंत सोरेन की सदस्यता गई तो, वे तुंरत इस्तीफा देकर सरकार बनाने का दावा पेश कर सकते हैं और दुबारा शपथ लेकर अगले छह माह तक वे सीएम बने रह सकते हैं. फिर छह माह के अंदर बरहेट उपचुनाव जीत कर वे अपने राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों को करारा जवाब दे सकते हैं. दूसरी ओर अगर उनपर पांच-छह साल के लिए चुनाव लड़ने पर रोक लगा दी गई, तब वे भारी मुसीबत में आ जाएंगे. इसके बाद झामुमो में सत्ता शीर्ष की लड़ाई शुरू होने की संभावना है. विश्वसनीय सूत्र का दावा है कि दिल्ली में हेमंत सरकार को चलता करने की रणनीति बनाई गई है. खैर, ये राजनीतिक कयास है, पर राजनीति में सब संभव है.
कांग्रेस भी सीएम पद की दावेदारी की सुगबुहाहट
यहां यह बताते चलें कि झामुमो के अध्यक्ष शिबू सोरेन स्वाभाविक पसंद हो सकते हैं। उनके नाम पर झामुमो के साथ-साथ कांग्रेस को भी कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए. छह माह के भीतर गुरुजी को भी विधानसभा की सदस्यता हासिल करनी होगी। दूसरी ओर शिबू सोरेन की बढ़ती उम्र और उनकी बीमारी, उन्हें झारखंड के नए सीएम के तौर पर स्वीकार करेगी या नहीं, यह भी बड़ा सवाल है. सत्ता के गलियारे में चल रही चर्चा के अनुसार झामुमो में वरिष्ठ विधायक और मंत्री चंपई सोरेन, मंत्री जोबा मांझी के अलावा गिरिडीह के झामुमो विधायक सुदिव्य सोनू भी विकल्प हो सकते हैं। वहीं हेमंत सोरेन के खिलाफ प्रतिकूल फैसला आने के बाद कांग्रेस भी दबाव बढ़ा सकती है। कांग्रेस के 18 विधायक हैं, जो भीतर ही भीतर सरकार में घुटन महसूस कर रहे हैं. बदली राजनीतिक परिस्थिति कांग्रेस खुलकर सामने आ सकती है. कांग्रेस के तीन विधायकों के कैश कांड को लेकर कांग्रेस के अंदरखाने में कई विधायक नाराज बताए जाते हैं। दरअसल, कांग्रेस में सत्ता में सीधी भागीदारी की सुगबुगाहट है. कांग्रेस का एक खेमा ऐसा भी है जो कांग्रेस के लिए सीएम पद की दावेदारी ठोक सकता है।
राजनीतिक पंडितों का मानना है कि झामुमो की ओर से अगर सीता सोरेन के नाम पर सहमति बनी तो, सरकार में उठे तूफान को शांत किया जा सकता है. लेकिन राजनीतिक स्वार्थ के चलते अगर पत्नी मोह नहीं छोड़ा गया तो, झामुमो में टूट संभव है. बहरहाल, चंद दिनों बाद झारखंड की सियासत के सत्ता संग्राम में किसकी जीत होगी और किसकी ताजपोशी, अब सबकी निगाहें राजभवन पर टिकी हुई हैं.