रीतू जैन
वह दौर याद कीजिये, जब मधुबन शिखरजी में न तो भारतवर्षीय दिगंबर जैन तीर्थ क्षेत्र कमेटी का दफ्तर था, न दिगंबर जैन महासमिति का। उस दौर में पर्वत की यात्रा करने में तीर्थयात्रियों को काफी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता था। पैदल मार्ग कच्चा और बेहद पथरीला था। हर वर्ष पूरे मार्ग पर बारिश के उपरांत मिट्टी डाली जाती और पुनः बारिश में सब कुछ बह जाता था। उस दौर में जयनारायण जैन और प्रकाश जी सासनी ने पैदल मार्ग को पीसीसी पथ निर्माण करने का बीड़ा उठाया था। बिना किसी कार्यालय के कार्ययोजना तैयार की गयी… जब काम प्रारंभ हो गया उसके बाद कार्यालय खुला और दानदातारों ने मुक्तहस्त से दान दिया।
जरा उस दौर को याद करें…!
उस दौर को भी याद कीजिये, जब आरा के रहने वाले नागेन्द्र कुमार जैन ने बीसपंथी कोठी के ट्रस्टी रहते हुए मधुबन में सीतानाला से पानी पाइपलाइन के जरिये लाने में कड़ी मशक्कत की थी और उसमें वह सफल भी हुए थे। उनके व्यक्तिगत प्रयास से ही हर घर में टैब वाटर की व्यवस्था की गयी थी, जो 24 घंटे चला करता था। हालांकि कालांतर में जलापूर्ति की व्यवस्था अपग्रेड होती गयी। उन्होंने ही एक ग्राम स्तर की कमेटी बनाकर मधुबन की साफ-सफाई के सामुदायिक दायित्व की नींव रखी। ये उनकी सामुदायिक सोच थी और जयनारायण जैन और प्रकाश जी सासनी की शिखरजी के प्रति अगाध श्रद्धा के भाव। एक में सर्वजन और एक में बहुजन के प्रति समर्पण भाव था।
अब आज के दौर में चले आयें…!
अब मधुबन में 50 से ज्यादा जैन संस्थाएं हैं, 100 से ज्यादा मंदिर हैं और 1000 के आसपास मंदिरों में तीर्थंकरों की मूर्तियां हैं। उस दौर में उंगलियों में जैन संस्थाओं को गिना जा सकता था। जिनमें तेरहपंथी कोठी, बीसपंथी कोठी, जैन श्वेतांबर सोसाइटी थी. इसके अलावा भोमिया जी भवन और कच्छी भवन निर्माणाधीन था। संतों का आगमन होता था तो इन्हीं संस्थाओं में उनका चातुर्मास हुआ करता था। लेकिन धीरे-धीरे नयी संस्थाएं पंथ और प्रदेश आधारित खुलने लगीं और सम्मेद शिखरजी के प्रति जो समर्पण भाव था, वह मठ निर्माण की तरफ कन्वर्ट हो गया। इसी दौर में भारतवर्षीय दिगंबर जैन तीर्थक्षेत्र कमेटी का हाइटेक कार्यालय खुला और सम्मेद शिखरजी के विवादों को लेकर चल रही अदालती लड़ाई के लिये धन एकत्रित करने की मुहिम चली। शिखरजी विकास के नाम पर एक संस्था का गठन हुआ और धन संग्रह कर उत्तर प्रदेश प्रकाश भवन का निर्माण हो गया। यह धर्मशाला काफी उस दौर में सबसे आधुनिक हुआ करती थी। उसके बाद प्रदेश, पंथ और आगम के नाम पर संस्थाएं खुलती गयीं और शाश्वत तीर्थ की रक्षा को लेकर सोच को जंग लगती चली गयी। पुरानी संस्थाएं कुछ को छोड़कर यथावत बिना अपग्रेडेशन के चलती रहीं और नित नयी संस्थाओं ने आधुनिक व्यवस्थाओं की वजह से दान दातारों को अपनी ओर आकर्षित कर लिया क्योंकि नयी संस्थाएं मठ विचारों से प्रेरित थीं।
पर्यटन स्थल को लेकर जैन धर्मावलंबियों में आक्रोश
बहरहाल, वर्तमान में सम्मेद शिखरजी की पवित्रता को लेकर आन्दोलन हो रहा है। इसलिये उन विचारों का समावेश जरूरी है जिनका नाता भूतकाल और वर्तमान से है और सम्मेद शिखरजी के भविष्य को नुकसान पहुंचाने में कारक बने हैं। एक ही सवाल है कि काश! ये संस्थाएं अपने विकास के साथ सामुदायिक विकास की गवाह बनी होतीं…! जैन समुदाय की कमजोरी की वजह से ही आज सरकार पारसनाथ को इको टूरिज्म की बात कर रही है. पर्यटन स्थान बनाया जाना जैन धर्मावलंबियों को कतई स्वीकार नहीं है. आज मध्यप्रदेश के भोपाल, इंदौर और राजस्थान सहित विभिन्न राज्यों से पारसनाथ पहुंची करीब एक दर्जन महिला श्रद्धालुओं ने गुणायतन परिसर पहुंचकर मुनिश्री प्रमाण सागर जी महाराज के समक्ष सरकार के इको टूरिज्म के फैसले का विरोध करते हुए वर्तमान में पारसनाथ की सुरक्षा पर सवाल खड़ा किया है. मुनिश्री ने महिला श्रद्धालुओं का भावनाओं से सरकार को अवगत कराने का आश्वासन दिया है. दरअसल, लंबे समय रेल यातायात की सुविधा बहाल करने की मांग की जा रही है, लेकिन जैन समुदाय की इस मांग को सरकार नजरअंदाज करती आ रही है.
डीसी ने सुरक्षा व्यवस्था सख्त करने का निर्देश दिया
इधर, भारतवर्षीय दिगंबर जैन तीर्थ कमेटी की ओर से झारखंड के मुख्यमंत्री को पांच पन्ने की चिट्ठी भेजकर सम्मेद शिखर जी तीर्थक्षेत्र की तमाम सुरक्षा व्यवस्था मुकम्मल करने की मांग की है. चिट्ठी में कहा गया है कि आए दिनों पर्वत वंदना मार्ग में अनैतिक कार्य हो रहे हैं. इसके कारण पारसनाथ की पवित्रता व शुद्धता का सवाल उत्पन्न हो गया है. हालांकि सीएम ने इसपर त्वरित संज्ञान लेते हुए विभागीय सचिव मनोज कुमार को निर्देश दिया है. सचिव के निर्देश पर गिरिडीह के डीसी नमन प्रियेश लकड़ा ने गिरिडीह के एसपी व एसडीओ को तत्काल व्यवस्था दुरुस्त करने का निर्देश दिया है. डीसी ने वंदना पथ में जगह-जगह पुलिस बलों की तैनाती करने का निर्देश दिया है. श्रद्धालुओं के साथ डोली वाले की मनमानी की शिकायत पर फौरन कार्रवाई करने की बात कही गई है. हालांकि श्रद्धालुओं का मानना है कि इस निर्देश से असामाजिक तत्वों पर कोई खास असर नहीं होता है. किसी भी स्थानीय प्रशासन का नियंत्रण नहीं है. वहीं पर्यटन स्थल बनाने की बात से पारसनाथ की धार्मिक पवित्रता नष्ट होने की आशंका जैन समाज व्यथित है.